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उत्तर प्रदेश की जनता इतनी जल्दी परिवर्तन ले आएगी ये किसी ने सोचा भी न था.इसे विडम्बना ही कहा जाएगा की ठीक ६ वर्ष पहले इसी राज्य की जनता ने सपा शासन को ‘गुन्डाराज,माफियाराज’ करार देकर परिवर्तन का बिगुल फूंक कर सत्ता बहुजन समाज पार्टी को सौंपी थी. अब फिर वही शासन! एक पुराना शेर है-‘मेरा कातिल ही मेरा मुन्सिफ है वो क्या मेरे हक मे फैसला देगा’, यही लोकतन्त्र की विशेषता है कि इसमे सत्ता की बागडोर घूमफिर कर उन्ही के हाथों मे जाती है और ये जनता की मज्बूरी होती है. ‘राइट टू रिजेक्शन’ और ‘राइट टू रिकाल’ के विकल्प की मांग यहाँ पर अत्यन्त तार्किक लगती है. अस्वीकार करने का अधिकार और दोबारा मतदान का अधिकार भारत मे अत्यन्त आवश्यक महसूस होता है. दुनिया के सबसे बडे लोकतन्त्र में यदि जनता को मजबूरन मतदान करना परे तो इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात क्या हो सकती है. सम्भव है कि पांच साल बाद जनता इस सरकार के कार्यकाल से त्रस्त होकर त्राही-माम त्राही-माम चिल्ला रही हो और उसके पास चुनने का कोइ उचित विकल्प न हो. संविधान मे आवश्यक संशोधन कर इस विकृति को दूर किया जना चाहिए….नागेश खारे ‘नागी’, बाँदा उ.प्र. मो-9415170115
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